फलस्तीन को मान्यता देने पर नेतन्याहू, बोले- “कोई फलस्तीनी देश नहीं होगा”

अजीत उज्जैनकर
अजीत उज्जैनकर

ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया द्वारा रविवार को फलस्तीन को आधिकारिक तौर पर देश की मान्यता दिए जाने के बाद, इसराइल में सियासी तापमान काफी बढ़ गया है। इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और अमेरिका से लौटने के बाद “कड़ा जवाब” देने की बात कही है।

“कोई फलस्तीनी देश नहीं होगा” – नेतन्याहू का सख्त संदेश

प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में नेतन्याहू ने साफ कहा:

“कोई फलस्तीनी देश नहीं होगा। जॉर्डन नदी के पश्चिम में कोई आतंकवादी देश हमारे बीच नहीं बनेगा।”

नेतन्याहू ने इसे 7 अक्टूबर के बाद फलस्तीन समर्थकों द्वारा आतंकवाद को “इनाम” देने के रूप में देखा और कहा:

“जो नेता अब फलस्तीन को मान्यता दे रहे हैं, वे आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।”

फलस्तीन को मान्यता: क्या है घटनाक्रम?

रविवार को ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फलस्तीन को आधिकारिक रूप से एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी। यह कदम वैश्विक स्तर पर उस लंबे समय से चल रही बहस का हिस्सा है, जिसमें फलस्तीनी लोगों के लिए एक संप्रभु राष्ट्र की मांग की जाती रही है।

इस मान्यता के बाद इसराइली विदेश मंत्रालय ने कहा:

“ये मान्यता जिहादी हमास के लिए एक इनाम है, और शांति प्रक्रिया के खिलाफ़ है।”

क्या होगा इजराइल का अगला कदम?

नेतन्याहू ने फिलहाल कोई सीधा एक्शन अनाउंस नहीं किया है, लेकिन उन्होंने इशारा किया कि अमेरिका दौरे से लौटने के बाद बड़ा कदम उठाया जाएगा। इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में नई चिंता पैदा कर दी है।

शांति वार्ताओं को प्रभावित कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में तनाव ला सकता है। फिलिस्तीन समर्थक देशों और इसराइल के बीच डिप्लोमैटिक दूरी बढ़ा सकता है।

क्या फलस्तीन की मान्यता से बदलेगा मिडिल ईस्ट का समीकरण?

इस फैसले से मिडिल ईस्ट पॉलिटिक्स में एक बड़ा शिफ्ट देखा जा रहा है। जहां कुछ देश फलस्तीन की स्वतंत्रता को समर्थन दे रहे हैं, वहीं इजराइल इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है।

यह विवाद एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सेंटर बन चुका है।

“शांति या संघर्ष?” – अगला कदम बताएगा दिशा

फलस्तीन को मान्यता देने का फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है, लेकिन नेतन्याहू की कड़ी प्रतिक्रिया ने शांति के रास्ते पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब सभी की नजर इस बात पर टिकी है कि इजराइल अमेरिका से लौटकर क्या कदम उठाता है — और क्या यह कदम शांति लाएगा या संघर्ष को और बढ़ाएगा।

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